दृष्टि


ये सर्वविदित है की राजस्थान अपने में गोरावशाली इतिहास को समेटे हुए है, जिसके लिये किसी प्रमाण की आवश्यकता नही है ऐसा इतिहास जो त्याग-बलिदान की अमिट स्याही से लिखा गया है, पर साथ ही यहा की रियाया की कहानी को शायद ही कभी प्रमुखता दी गई, जिसकी हालत अग्रेजों के शासन के बाद बद से बदतर होती गई, मुझे गर्व है की मैं उस धरा पर जन्म लिया जहा के बिजोलिया क्षेत्र मे ४४ साल तक सांमतशाही के खिलाफ किसानो के हक मे चलने वाला आंदोलन चला व किसानो ने उसमे सफलता हासिल की इसलिए सबसे पहले मैं श्री माणिक्यलाल वर्मा , साधु सीताराम दास व विजय सिंह पथिक जी को नमन करता हु जिन्होने हमारे जीवन व विचारों पर गहरा असर डाला है, जिनका जीवन व विचार आज भी हमारा मार्गदर्शन करते है।

भारत जब आजाद हुवा तो राजस्थान को दोहरी गुलामी से आजादी मिली पर फिर भी सांमतशाही तो बची हुई थी जो शोषण के पुर्वाग्रही विचारों से ग्रसित थी, तत्कालीन कॉग्रेस नेताओं ने इस गुलामी की आखिरी बेड़ी से भी आजादी पाने की ठानी व सरदार पटेल के नेतृत्व मे राजस्थान निर्माण करवा के उसे अंजाम दिया गया |

आजादी के बाद सबसे बड़ी चुनौती सांमतीशाही से मुक्ती व गरीब जनता को राहत उनका हक दिलाने की थी, हमारे महान नेताओ ने लोकत्रांतिक तरीके अपनाकर किसानो व हर वर्ग को उनका हक दिलवाया जिसको आज किसी प्रमाण की जरुरत नही है| आज आजादी के ७० साल बाद किसी नेता का जनता व राज्य के प्रती क्या विजन(दृष्टि) होना चाहिये ये प्रश्न स्वाभाविक है, ये इसलिये भी विचारणीय है क्योकी आज के हालात मे राजनीतिक जोड़तोड़ मे विचारधारा व उसके पिछे छिपे राजनीतिक दर्शन का सर्वथा लोप हो चुका है।

मैंने हमेशा से ही प्रजातंत्र में सकारात्मक प्रतिरोधों का सम्मान किया, प्रतिरोधी को भी अपने विचार दूसरों पर आरोपित करने से बचना चाहिए, क्यों की ऐसा प्रयास एक प्रकार की हिंसा है।

हमने कई बलिदानो-त्यागों के बल पर स्वशासन प्राप्त किया, तत्कालीन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद क्रांतिकारी बदलावों के माध्यम से समस्या समाधान के कई प्रयास हुए है,जिसके परिणाम स्वरूप देश आत्मनिर्भर हुआ।

लेकिन मैंने देखा है कि अभी भी कुछ क्षेत्रौ में समस्याए व्यापक बनी हुई है।जिनमे शहरी-ग्रामीण, आमिर-ग़रीब के मध्य संसाधनों की उपलब्धता, उपयोगिता का अंतर लगातार बना हुआ है।

भारत गाँवों का देश है, देश की आत्मा गाँवों में बसती है। मनुष्य ने अपनी योग्यता से नगरों को खड़ा किया, ग्राम ईश्वर द्वारा बसाए गए।एक ओर मुझे ग्रामीण होने पर गर्व है वही दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रॊ की वास्तविक का ज्ञान है, यह ज्ञान कोई काग़ज़ी न हो कर एक आम ग्रामीण के समान मैंने भी समस्याओं का स्व:अनुभव किया है।

मैं अनुभव करता हूँ कि मनुष्य केवल पेट लेकर ही पैदा नहीं होता, उसे अपनी आजीविका के लिए परम सता ने दो हाथ भी दिए है परंतु उस समय स्थिति बड़ी बेढब बन जाती है जब हाथो को कोई काम नहीं मिलता। ग्रामीण जनता इस मन:स्थिति की सर्वाधिक शिकार है। मेरे क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थिति इसे ओर व्यापक बना देती है।

मैं सहकारिता को मुख्यधारा में लाने में विश्वास रखता हूँ। मैंने सहकारिता को बदलते समय के अनुसार एक नए मॉडल को अपने कार्यक्षेत्र में प्रस्तुत कर रहा हूँ।सहकारिता के माध्यम से एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना प्रमुख लक्ष्य है। फ़सल उत्पादन के साथ पशुपालन से मिश्रित खेती को मुख्यधारा में लाना मेरे क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के अनुकूल है।

मेरा अभियान, मेरी अभिलाषा सामाजिक सरोकार, सद्भावना, नवाचार पर केन्द्रित है, जो युवा हाथों को रोज़गार, महिलाओं का सामाजिक-आर्थिक विकास के माध्यम से सशक्त करना, उचित शिक्षा की पहुँच को सुनिश्चित करना है।जो आर्थिक समवर्धि को वास्तविक रूप से आर्थिक विकास में तब्दील कर सकें।

विकास ही जीवन है, जीवन को वही सार्थक बनाता है जो उसे एक अवसर की तरह लेता है। सभी का हार्दिक धन्यवाद।